Vinod Danekar
Poetry ♥ Prose ♥ Programming
Friday, October 5, 2012
स्वर विहार
स्वर विहार करुया आपण
शब्द-सृष्टीचे संगोपन.
स्वर भूमीवरचे सुर सखे
देती जीवांना संजीवन
नव-कल्पारंभी सूर प्रिये
करती सृष्टी-सृजन
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